dual marker test in pregnancy
- 2025-04-25 11:46:53
- DoubleMarkerTest,PrenatalScreening,GeneticTesting,FirstTrimesterScreening,DownSyndromeScreening,PregnancyScreening,NTScan,PrenatalCare ,HealthyPregnancy
गर्भावस्था एक सुंदर यात्रा है, लेकिन इसके दौरान माँ और शिशु के स्वास्थ्य के लिए कई जरूरी टेस्ट करवाना बेहद आवश्यक होता है। इन्हीं जरूरी जाँचों में से एक है डुअल मार्कर टेस्ट, जो गर्भस्थ शिशु में किसी भी क्रोमोसोमल असामान्यता (जैसे डाउन सिंड्रोम और एडवर्ड्स सिंड्रोम) का शुरुआती पता लगाने में मदद करता है।
इस लेख में जानिए – डुअल मार्कर टेस्ट क्या होता है, यह क्यों करवाना चाहिए, प्रक्रिया, सामान्य रेंज और रिपोर्ट का क्या मतलब होता है।
डुअल मार्कर टेस्ट क्या है?
डुअल मार्कर टेस्ट, जिसे फर्स्ट ट्राइमेस्टर स्क्रीनिंग टेस्ट भी कहा जाता है, एक ब्लड टेस्ट है जो गर्भावस्था के 9 से 13 सप्ताह के बीच किया जाता है। इसका उद्देश्य भ्रूण में डाउन सिंड्रोम (Trisomy 21) और एडवर्ड्स सिंड्रोम (Trisomy 18) जैसी आनुवंशिक विकृतियों की पहचान करना है।
इस टेस्ट के दौरान माँ के रक्त में निम्नलिखित बायोमार्कर की जांच की जाती है:
- Free Beta-hCG: प्लेसेंटा द्वारा निर्मित एक हार्मोन
- PAPP-A (Pregnancy-Associated Plasma Protein A): प्लेसेंटा के विकास से जुड़ा एक प्रोटीन
इन तत्वों का स्तर सामान्य से अधिक या कम होने पर भ्रूण में क्रोमोसोमल विकारों की संभावना हो सकती है।
डुअल मार्कर टेस्ट क्यों जरूरी है?
- जेनेटिक डिसऑर्डर का पता लगाने के लिए – यह टेस्ट भ्रूण में डाउन सिंड्रोम, ट्रायसोमी 13/18 जैसी समस्याओं की शुरुआती पहचान करता है।
- गर्भवती महिला और शिशु दोनों के लिए सुरक्षित – यह एक नॉन-इनवेसिव (सुरक्षित) टेस्ट है जो केवल रक्त के नमूने पर आधारित होता है।
- आगे की जांच का संकेत देता है – यदि रिपोर्ट हाई रिस्क दिखाए, तो डॉक्टर NIPT, CVS या अमनियोसेंटेसिस जैसे और टेस्ट की सलाह दे सकते हैं।
किन महिलाओं को यह टेस्ट कराना चाहिए?
हालांकि यह टेस्ट अधिकतर प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए फायदेमंद है, लेकिन निम्नलिखित स्थितियों में यह खास तौर पर ज़रूरी हो जाता है:
- जब माँ की आयु 35 वर्ष से अधिक हो
- परिवार में जेनेटिक बीमारी का इतिहास हो
- IVF या हाई-रिस्क प्रेग्नेंसी के मामले
- पहले गर्भ में किसी प्रकार की क्रोमोसोमल समस्या रही हो
- अल्ट्रासाउंड में कोई असमानता दिखाई दे
डुअल मार्कर टेस्ट की प्रक्रिया
- यह टेस्ट डॉक्टर की सलाह पर 9 से 13 सप्ताह के बीच किया जाता है
- माँ के ब्लड का सैंपल लिया जाता है
- सैंपल में hCG और PAPP-A के स्तर की जांच की जाती है
- इस टेस्ट को अक्सर NT स्कैन (Nuchal Translucency Scan) के साथ मिलाकर किया जाता है, जिससे रिजल्ट अधिक सटीक आते हैं
रिपोर्ट की व्याख्या: सामान्य और असामान्य परिणाम
- Low Risk (कम जोखिम): भ्रूण में असामान्यता की संभावना कम है।
- High Risk (अधिक जोखिम): भ्रूण में जेनेटिक असामान्यता की संभावना अधिक हो सकती है। इस स्थिति में डॉक्टर आगे की जांच जैसे NIPT, अमनियोसेंटेसिस या CVS की सलाह दे सकते हैं।
महत्वपूर्ण: High risk रिपोर्ट यह निश्चित नहीं करती कि भ्रूण को विकार है, बल्कि यह सुझाव देती है कि आगे की जांच आवश्यक है।
डुअल मार्कर टेस्ट से जुड़ी नई रिसर्च और जानकारियाँ
- ACOG (American College of Obstetricians and Gynecologists) के अनुसार, डुअल मार्कर टेस्ट को NT स्कैन के साथ मिलाकर करवाने से यह अधिक प्रभावशाली होता है।
- हालिया रिसर्च से पता चला है कि NIPT की सटीकता डुअल मार्कर टेस्ट से अधिक होती है, लेकिन इसकी लागत भी ज्यादा होती है।
- WHO की रिपोर्ट बताती है कि पहले तिमाही में स्क्रीनिंग से गर्भधारण को सुरक्षित और बेहतर बनाया जा सकता है।
अगर डुअल मार्कर टेस्ट का परिणाम असामान्य हो तो क्या करें?
- किसी जेनेटिक काउंसलर से परामर्श लें
- डॉक्टर से सलाह लेकर अगली जाँच जैसे NIPT या अमनियोसेंटेसिस कराएं
- मानसिक रूप से मजबूत रहें और डॉक्टर की निगरानी में आगे का उपचार लें
निष्कर्ष
डुअल मार्कर टेस्ट एक महत्वपूर्ण प्रीनेटल स्क्रीनिंग है जो माँ और शिशु के अच्छे स्वास्थ्य की दिशा में पहला कदम है। यह टेस्ट आपको समय रहते सही जानकारी देता है ताकि आप और आपके डॉक्टर मिलकर उचित निर्णय ले सकें।
FAQs Section:
Q1. डुअल मार्कर टेस्ट कब करवाना चाहिए?
यह टेस्ट गर्भावस्था के 9 से 13 सप्ताह के बीच डॉक्टर की सलाह पर करवाना चाहिए।
Q2. क्या डुअल मार्कर टेस्ट अनिवार्य है?
यह अनिवार्य नहीं लेकिन गर्भावस्था में संभावित क्रोमोसोमल समस्याओं की जानकारी के लिए बेहद जरूरी है, खासकर हाई-रिस्क मामलों में।
Q3. डुअल मार्कर टेस्ट की रिपोर्ट में हाई रिस्क आने का क्या मतलब है?
हाई रिस्क का मतलब है कि भ्रूण में विकार की संभावना अधिक है, हालांकि पुष्टि के लिए आगे की जांच जरूरी होती है।
Q4. क्या डुअल मार्कर टेस्ट सुरक्षित है?
हां, यह पूरी तरह सुरक्षित और नॉन-इनवेसिव टेस्ट है जो केवल खून के सैंपल से किया जाता है।
Q5. डुअल मार्कर टेस्ट की कीमत कितनी होती है?
भारत में यह टेस्ट ₹1500 से ₹3500 तक हो सकता है, जो शहर और लैब पर निर्भर करता है।
Leave Comment